Sunday, 1 December 2013

beejakshara mantra Universal Strategy (Worldly people's perception)

People's concept and philosophy

Tulsidas ji
Nowadays people's concept and philosophy has totally changed about god and his perception. They are thinking about modern culture and creating a dynamic routine in their daily life but they don't satisfied in reality. they are living tense for work and time.

There are two types of people in the world. First is selfish, which is only concerned with his work and do not care of others. Such People become oblivious to knowing everything and they do not reaction for injustice or evil on others. Second types of people seems wealth and fascination or illusory trap everything on this world and they are suspect about god exist.


Hence such people don't ever realize that happiness and satisfaction, and for be happy in life, they should start to praise and adoration of God.

संसारी लोगों की रीति (धारणाएँ):-महाग्रंथ रामचरितमानस के रचियता महाकवि तुलसीदास जी ने आज के युग के बारे में पहले से ही अनुमान लगा लिए था और उन्होंने एक नीति शास्त्र की रचना भी कि थी जिसमे उन्होंने कई नीतिगत व्याख्यान दिए और बताया कि मनुष्य भी कई तरह के होते है और इन सब का उन्होंने इस नीति शस्त्र में उल्लेख किया है | मैं नीति शास्त्र कि ज्यादा चर्चा न करते हुए, नीति शास्त्र के इस दोहे पर ध्यान केंद्रित करना चाहूँगा | तुलसीदास जी ने इस पंक्ति में यह सपष्ट किया है कि मानव आज के युग में अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए क्या करता है और जो मानव जीवन का परम उद्देश्य है और जिस उद्देश्य के लिए मनुष्य को मृत्युलोक में आना पडता है उसको भुलाकर वह मोहवश क्या-क्या करता है |

अर्थात तुलसीदास जी ने यह स्पष्ट करना चाहा है की मनुष्य का मुख्य उद्देश्य उस परमपिता परमात्मा की प्राप्ति का प्रयत्न करना है पर मानव आज के इस घोर अंधकार-मय जगत में तथा इसकी चकाचौंध भरी माया में समझता है कि :- यहाँ तो उजाला ही उजाला है और जो खुशियाँ यहाँ है वो तो कहीं नहीं है | परन्तु जब अंत समय आता है तो मनुष्य का न तो पैसा कम आता है और न ही यश और समृद्धि और न ही प्रारब्ध काम आता है, काम आता है तो केवल पूर्ण जन्म के पुण्य और धर्म, जो मनुष्य पूरे जीवन कल में नहीं करता है | अत: तुलसीदास जी ने ऐसे लोगो पर नीति व्यंग्य रूप में कटाक्ष किया है और उन्हें सही रस्ते पर आने कि प्रेरणा दी है |

In English:-
 Hare charhin taphi bare jarat fare pasarhin hath |
 tulsi swarth meet sab parmarth raghunath ||


In Hindi:-
 हरे चरहिं तपही बरे जरत फरे पसारहिं हाथ |
 तुलसी स्वारथ मीत सब परमार्थ रघुनाथ ||

भावार्थ:- अर्थात तुलसीदास जी ने कहा है कि जब घोर कलियुग आएगा तब मनुष्य इतना स्वार्थी हो जायेगा कि जहाँ उसे लाभ और अपना फायदा दिखेगा वो उसी काम को करेगा और मानवता लुप्त होती चली जायेगी | तथा मनुष्य जी कथनी और करनी में बड़ा अंतर आ जायेगा, और मनुष्य को ही मनुष्य का चरित्र समझ में नहीं आएगा कि क्या सही है और क्या गलत | और तो और तुलसीदास जी तो यह भी कह गए कि मनुष्य का कोई मित्र नहीं होगा, सब मित्र, सगा सम्बन्धी स्वार्थ के पीछे है, जब स्वार्थ खत्म तो सबकुछ समाप्त | अत: तुलसीदास जी ने कहा है कि सब स्वार्थ के नाते है और सबसे बड़ा परमार्थ तो रघुनाथ ही है और मनुष्य को उनका स्मरण करते रहना चाहिए |

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