Mantra to makes enemies as good friend
रामचरितमानस में दिए गए इस मंत्र से बड़ा से बड़ा दुश्मन भी दोस्त की तरह व्यव्हार करने लगता है | मंत्र की चर्चा करने से पहले हम मित्र और शत्रु में जो भेद है उस पर चर्चा करेंगे | मित्र और शत्रु में जो असमानताएं होती है वह ये है कि मित्र हमेशा भला चाहता है, जबकि शत्रु यह चाहता है कि उसका शत्रु का नाश हो जाये |और अधिकतर लोग इसे पढ़ने के बाद यही सोचेंगे की शत्रु को मित्र बनाने का क्या प्रयोजन? या शत्रु को मित्र बनाने से क्या लाभ होगा? परन्तु मैं आपको बताता हूँ कि इसका क्या प्रयोजन है और यह क्यों आवश्यक है |
Shree Ram |
मैं यह नहीं कहता कि आप जो सोचते है वह गलत है या बुद्धिहीनता है और मनुष्य की सोच सही या गलत में पहचान नहीं कर सकती, मेरा यह मत बिलकुल भी नहीं है | पर किसी को आरोपित करने से पहले अपने निर्णय पर गहनता से चिंतन अवश्य करना चाहिए और किसी कि भी बातों मैं आकार अपना निर्णय लेना बुद्धिमानी नहीं है, अत: सर्वदा अपना निर्णय स्वयं लेवें तथा सोच समझकर निर्णय लेने से ही पहचान होती है कि कौन अपना है और कौन पराया |
रामचरितमानस के इस मंत्र का उपयोग शत्रु को मित्र बनाने के लिए किया जाता है | यह मंत्र किसी भी प्रकार के शत्रु को मित्र बनाने का सामर्थ्य रखता है | यहाँ किसी भी प्रकार के शत्रु से तात्पर्य है कि, चाहे समक्ष रहने वाला शत्रु हो या छद्मवेश में रहने वाला शत्रु, सभी शत्रुओं को आपका मित्र बना देता है | यह मंत्र इस प्रकार से है:-Mantra:-
Garal Sudha Ripu Karhi Mitayi |
Gopad Sindhu Anal Sitlayi ||
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई |
गौपद सिन्धु अनल सितलाई ||
भावार्थ:- यह मंत्र रामचरित मानस में सुन्दरकाण्ड से लिया गया है जिसमे हनुमान जी श्री राम प्रभु का नाम लेकर लंका नगरी में प्रवेश कर रहे है और मन ही मन में प्रभु श्री राम का बारम्बार स्मरण कर रहे है | तथा इस शुभ अवसर पर भगवान शिव माता पार्वती से कहते है कि श्री राम के नाम से संसार के सारे कार्य सुगम हो जाते है और ऐसा कोई कार्य नहीं है जो प्रभु की कृपा से नहीं हो पावे | और कहते है कि "गरल सुधा रिपु करही मिताई" अर्थात जहर और अमृत आपस में बैरी होने पर भी प्रभु के प्रताप से मित्र बन सकते है, सागर भी गाय के पैर जितना हो सकता है, तथा अग्नि शीतल हो जाती है | यह सब सिर्फ श्री राम जी की कृपा से ही हो सकता है |
मंत्र जाप विधि:- जिन भक्तो को शत्रु सम्बंधित समस्याए है उनको प्रत्येक दिन इस 108 बार मंत्र का जाप करना चाहिए तथा तुलसीदास जी की इस चौपाई (मंत्र ) का निरंतर जप व् ध्यान करने से आपके शत्रु (Enemy) भी आपके मित्र बन जाते है | और रामचरितमानस के अनुसार अगर सच्ची श्रृद्धा व् विश्वास के साथ श्री राम व हनुमान का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जप किया जाये तो आपके जीवन में कभी किसी प्रकार की बाधा नही आ सकती है ! इस मंत्र को रोज कम से कम 15 से 20 बार तो अवश्य ही जपना चाहिए | मंत्र का फल त्वरित प्रभाव से पाने के लिए मंत्र को सिद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है, मंत्र को हवन काके सिद्ध करने से मंत्र का प्रभाव शीघ्रता से होता है |
मंत्र को सिद्ध करने का विधान
मंत्र जाप विधि:- जिन भक्तो को शत्रु सम्बंधित समस्याए है उनको प्रत्येक दिन इस 108 बार मंत्र का जाप करना चाहिए तथा तुलसीदास जी की इस चौपाई (मंत्र ) का निरंतर जप व् ध्यान करने से आपके शत्रु (Enemy) भी आपके मित्र बन जाते है | और रामचरितमानस के अनुसार अगर सच्ची श्रृद्धा व् विश्वास के साथ श्री राम व हनुमान का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जप किया जाये तो आपके जीवन में कभी किसी प्रकार की बाधा नही आ सकती है ! इस मंत्र को रोज कम से कम 15 से 20 बार तो अवश्य ही जपना चाहिए | मंत्र का फल त्वरित प्रभाव से पाने के लिए मंत्र को सिद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है, मंत्र को हवन काके सिद्ध करने से मंत्र का प्रभाव शीघ्रता से होता है |
मंत्र को सिद्ध करने का विधान
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