Sunday, 1 December 2013

beejakshara mantra Meditation And Meditation Techniques

 ध्यान (Meditation) क्या है ? और यह कैसे किया जाता है

ध्यान अर्थात Attention, हमारे मन तथा बुद्धि को एकाग्र और केंद्रित करने के लिए जो प्रक्रिया हम उपयोग में लेते है, उसे ही हम ध्यान (Meditation) कहते है | परन्तु यह प्रक्रिया केवल मन (चित्त) और विवेक को केंद्रित ही नहीं करती बल्कि हमारे मस्तिष्क को भी एक निश्चित जगह पर केंद्रित करके मन को स्थिर कर देती है |

Lord Shiva In Meditation
ध्यान के कई सिद्धांत बड़े बड़े महर्षियों और महापुरुषों ने दिए है और ध्यान क्या है, वैज्ञानिक अभी भी इसी गहमागहमी में उलझे हुए है लेकिन भारतवर्ष तो आदिकाल से ही ध्यान की परम्परा का निर्वहन कर रहा है और आज भी करता है, प्राचीन काल में भारत के ऋषि-मुनि ध्यान में भगवान का चिंतन किया करते थे और समाधिस्थित होकर अपने शरीर को स्थिर कर लेते थे तथा प्राणायाम द्वारा प्राण वायु को रोकना आदि उनके प्रतिदिन के दिनचर्या के अंग हुआ करते थे, पर प्राणायाम और ध्यान दो भिन्न भिन्न शब्द है और दोनों का ही अलग अलग विधान होता है | हम ध्यान पर चर्चा कर रहे थे की ध्यान है क्या ?

ध्यान (Meditation):- ध्यान मानसिक चेतना का वह साधन या स्वरूप है जिसमे जीव अपने मन में स्थिर किये हुए किसी एक निश्चित बिंदु पर विचार अथवा ध्यान को केंद्रित करता है और उसी बिंदु विशेष का चिंतन करने का प्रयत्न करता है और उसको मानसिक से वास्तविक अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है | इस प्रक्रिया को ही ध्यान कहते है |

ध्यान (Meditation In English):- Meditation In English

ध्यान के प्रकार (Types of Meditation):- ध्यान (Meditation) को कई भागों में विभाजित किया गया है पर मुख्यत: ध्यान तीन भागों में माना जाता है -
  1. सरल और सहज ध्यान (जैसे किसी तेज आवाज पर आपका ध्यान जाना)
  2. बलात् ध्यान (किसी मानचित्र या चित्र को देखने की स्थिति में ध्यान)
  3. अर्जित ध्यान (अर्जित ध्यान जैसे किसी पुस्तक में पढ़ना)
यह सभी ध्यान साधारण ध्यान की श्रेणी में आते है, क्योकि जिस ध्यान की बात मैं कर रहा हूँ वो तो जड़ अर्थात चैतन्य अवस्था है उस ध्यान को चिंतन या समाधि में स्थित होकर स्थिर होना भी कहा जाता है |

वैसे तो ध्यान (Meditation) को परिभाषित करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि ध्यान वह अवस्था है   जिसे समझने के लिए ध्यान के लक्षित अर्थ का ज्ञान होना भी परम आवश्यक है |

Lord Mahaveer's Meditation
उदाहरणार्थ :- ध्यान की अवस्था समझाने हेतु में आपको आपके ध्यान की अवस्था में ले जाना चाहूँगा जो आपने कई बार जाने अनजाने में किया होगा जैसे की मैं पहले चर्चा कर चुका हूँ कि साधारण और योग युक्त ध्यान में बड़ा अंतर है | साधारण ध्यान में अखबार पढते हुए ध्यान लगाना, किसी धमाके की आवाज पर ध्यान जाना आदि | पर कभी कभी आपने ऐसा चित्र या तस्वीर देखी होगी जो साधारण दृष्टि से देखने पर उसमे कुछ नहीं दिखता पर 10 से 15 मिनट तक एक ही जगह ध्यान केंद्रित कर देखने पर स्पष्ट होता है कि इसमें अंदर कि ओर एक और चित्र है जो केवल ध्यान लगाने पर ही दिखताहै और जैसे ही नजर या पलक झपकती है वह आकृति ओझल हो जाती है, इस प्रक्रिया को ही ध्यान कहते है, पर यह ध्यान का केवल एक प्रथम स्वरूप या प्रथम सोपान है |

ध्यान तो मनुष्य को उसके जीवन का सही मूल्य समझाने की एक सीढ़ी है | ध्यान के द्वारा ही मनुष्य को उसकी असली उपयोगिता का पता चलता है और ध्यान ही वह उपाय है जिससे मनुष्य शरीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हो सकता है |

ध्यान करने की विधि (Meditation Techniques):- ध्यान करना कोई बड़ा कठिन कार्य नहीं है अपितु ध्यान सरल भी नहीं है | ध्यान करने के लिए कई भ्रान्तियाँ फैली हुई है जैसे कि ध्यान केवल एकांत वाले स्थान पर ही होता है, ध्यान के लिए मनुष्य को आसन पर बैठकर आँखे बंद कर बैठना पड़ता है इत्यादि | परन्तु ऐसा नहीं है, ध्यान कोई भी कभी भी किसी भी स्थान पर किया जा सकता है बस जरूरत है तो दृढ संकल्प की |
  • ध्यान करने कि विधि में प्रथम चरन में आप कुछ भी कर रहे हो तो उस कम में तन्मयता से और एकाग्रचित्त हो जाइये, इतना तल्लीन हो जाइये कि आप भूल जाएँ कि आप कहाँ पर है, समय क्या हुआ है इत्यादि |
  • चलिए इन सब बातों को छोडिये और हम अलग विधि कि बात करते है, कल्पना करिये कि आप लेटे हुए या कही पर बैठे हुए हो, और आप ध्यान लगाने कि सोच रहे हो | ध्यान के लिए सबसे पहले यह विचार करना चाहिए कि आप क्या सोच रहे हो, अत: ध्यान करने के लिए आप तैयार हो जाइये और जो कुछ भी सोचना बंद कर देवें तथा अपने मन तथा मष्तिष्क को शांत कर दे | अब आप ध्यान को किसी एक निश्चित बिंदु पर केंद्रित करने का प्रयास कीजिये जैसे कि आपकी साँस ऐसा करते समय यह ज्ञात रहे कि आपको आपकी साँस कि गति में इतना ध्यान केंद्रित करना है कि प्रत्येक साँस कब अंदर आ रही है और कब बाहर जा रही है अर्थात पेट का ऊपर उठना और निचे जाने पर ही ध्यान केंद्रित करें | और विचारों का आवागमन बंद कर दे, और आपको आने वाले हर विचार को आने दे और जाने दे तो कुछ समय बाद आपको महसूस होगा कि आपका ध्यान केंद्रित होने लगा है ऐसा आप प्रत्येक वस्तु पर ध्यान का प्रयोग कर अपने ध्यान कि क्षमता को बढ़ा सकते है |
यह सब तो केवल ध्यान का शुरूआती सोपान है, ध्यान तो गहराइयों में उतरता चला जाता है जिससे मनुष्य का जीवन ही बदल जाता है | 

भगवद्गीता में ध्यान का रहस्य (Meditation In Bhagawad-Gita):- एक और प्रकार के ध्यान कि बात मैं करना चाहूँगा जो आसन पर बैठकर किया जाता है जो ध्यान योगीजनों के लिए श्रेष्ठ माना गया है जिसमे मनुष्य कि चेतना का परमात्मा से मिलन होता है और जो ध्यान सब सृष्टि से परे होता है अर्थात इस ध्यान को केवल तत्वज्ञानी योगी ही कर सकते है, इस तरह के ध्यान को चिंतन भी कहते है | 

यह ध्यान कि पराकाष्ठा है जिसे भगवान श्री योगेश्वर कृष्ण ने गीता में कहा था | भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहते है कि हे पार्थ ! जो मनुष्य अपने आप को मुझ में स्थापित कर, स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध आसन पर विराजमान होकर आँखे बंद कर मन को एकाग्र करना चहिये और अगर आँखे खुली है तो आँखों कि पुतलियों को एक जगह पर स्थिर करना चहिये और विचारों के प्रवाह को रोकने का प्रयत्न करना चहिये तथा आँखों कि पुतलियों को स्थिर करना चाहिए क्योकि पुतलियों के हिलने से ध्यान दूसरी जगह जाता है और इस तरह से मन में विचार उत्पन्न होते है तथा मन कि इन्द्रियों और क्रियाओं को वश में करना चाहिए तथा केवल परमात्मा का स्मरण करना चाहिए और ध्यान को केवल परमात्मा में ही स्थित करने का प्रयत्न करना चाहिए |  ऐसा करने से कुछ ही देर में मन शांत हो जाता है और ध्यान आज्ञा चक्र पर स्थित हो जाता है और परम ज्योति स्वरुप परमात्मा के दर्शन होते हैं | 

Meditation By Osho :-ओशो ने आज के युग में एक आदर्श के रूप में ध्यान की परिभाषा दी तथा मनुष्यों को समझाने के लिए प्रेरित किया कि असल में ध्यान क्या है और यह किस किस प्रकार से हो सकता है | तथा ध्यान करना कितना आसान है यह भी ओशो ने भली-भांती बतलाया है |


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