Karma and effects of karma
Reactions of Karma |
हमारे शास्त्रों और पुरानों में कर्म का बड़ा महत्व है, यथा मनुष्य और सभी जीवों के लिए कर्म का एक सामान महत्व है | इसके अनुसार प्राणी अपने जीवनकाल में जो कुछ भी करते है वह कर्म के अंतर्गत आता है, चाहे वह अच्छा कार्य और या बुरा सभी को कर्म में सम्मिलित किया जाता है | तथा इसी कर्म के अनुसार प्राणियों को सुख और दुखों का भोग कारण पडता है |
कर्म की महिमा आदि से लेकर अनंत तक एक समान ही देखने को मिलती है, इसमें प्राणीमात्र के जीवन से लेकर मृत्यु तक के कर्मों का उल्लेख होता है | भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म को महान बतलाते हुए कहा है कि मनुष्यों को कर्म करने से पहले चिंतन अवश्य करना चाहिए कि जो कर्म करने जा रहे है वो उचित है या नहीं, क्योंकि जैसा कर्म हम करते है, वैसा ही फल हमें भोगना पडता है |
और यह भी सच्चाई है कि मनुष्य का पुनर्जन्म भी कर्मों के आधार पर ही होता है | अत: मनुष्य को चाहिए कि जो हुआ उसे भूलकर अच्छे कर्मों को कारण आरम्भ करें, और मन को प्रभु परम में लगाये और अपने जीवन को धन्य बनायें |
रामचरितमानस और भगवद्गीता में कर्म को इस प्रकार परिभाषित किया गया है :-
(1)चौपाई:-
काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता |
निज कृत करम भोग सबु भ्राता ||
भावार्थ:- महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस के अयोध्या कांड में श्री लक्ष्मणजी निषादराज से कहते है कि - हे भाई ! कोई किसी को सुख दुःख देने वाला नहीं है, सभी लोग अपने किये हुए कर्मों का फल भोगते है ! अर्थात जैसी करनी वैसी भरनी !
(2)चौपाई :-
कर्म प्रधान विश्व करि राखा |
जो जस करहि सो तस फलु चाखा ||
भावार्थ:- अर्थात इस संसार में कर्म ही प्रधान है, जो जैसा करता है वैसा ही फल पाता है |
"जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल !"
भगवद्गीता श्लोक :-
यादृशं कुरुते कर्म, तादृशं फलमश्नुते |
और
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं |
भावार्थ:- गीता में भगवान कृष्ण कहते है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल पाता है !और मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मो के फल अवश्य ही भोगने पड़ते है |
इसलिए कहावत है कि "बोया पेड़ बबूल का, आम कहा ते खाय " |
अत: मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन में उचित कर्म करें, क्योकि सभी जीवों में मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है जो सोचने और समझाने की क्षमता रखता है |
इसलिए कहावत है कि "बोया पेड़ बबूल का, आम कहा ते खाय " |
अत: मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन में उचित कर्म करें, क्योकि सभी जीवों में मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है जो सोचने और समझाने की क्षमता रखता है |
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