श्री कृष्णमधुराष्टकम
Shree Krishna |
श्री मधुराष्टकम हिंदू भक्ति दार्शनिक कवि और भक्तशिरोमणि श्रीवल्लभाचार्य जी द्वारा रचित सुन्दर तथा अनुपम संस्कृत रचना है | श्री कृष्ण प्रेम में मधुराष्टकम अनूठी छाप छोडता है, भगवान कृष्ण की भक्ति में मधुराष्टकम का राग भक्ति को नया आयाम प्रदान करता है |
मधुराष्टकम का सीधा सा तर्क यह है कि इसमें प्रभु श्री कृष्ण कि सभी मधुर और आनंदमयी लीलाओं का उल्लेख तो है ही साथ ही साथ इस भजन (अष्टम) में श्रीकृष्ण के मधुर स्वरुप के भी दर्शन होते है |
मधुराष्टकं को बोलने या पाठ करने में जितने आनंद कि अनुभूति होती है, उतना ही आनंदमय यह श्रवणीय भी है | श्रीकृष्ण के प्रेम और रूप का परिहार्य इस मधुराष्टकम को माना जाता है |
नयनं मधुरं हसितं मधुरम् |
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||1||
वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरम् |
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||2||
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ |
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||3||
गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् |
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||4||
करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं स्मरणं मधुरम् |
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||5||
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा
यमुना मधुरा वीची मधुरा |
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||6||
गोपि मधुरा लीला मधुरा
युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम् |
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||7||
गोपा मधुरा गावो मधुरा
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा |
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ||8||
(इति मधुराष्टकं समाप्त)
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