(त्रिकाल संध्या) भोजन के समय बोले जाने वाले मंत्र
कर्मों की महिमा बताते हुए भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि हे पार्थ ! तुम जो भी करते हो, जो भी खाते हो, जो भी बोलते हो और जो भी सोचते हो सब मुझको समर्पित कर दो | ऐसा करने से तुम सभी प्रकार से अच्छे कर्म के भागी बनोगे |
अत: मनुष्य को भगवद्गीता में भगवान के कहे वचनों का पालन कर सब कुछ प्रभु को सरेपित करते हुए जीवन जीना चाहिए | तथा अपने आप को उनकी कृपा का पात्र बनाना चाहिए |
मंत्र इस प्रकार हैं :-
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः |
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ||
(गीता श्लोक)
In English:-
Yagyashishtashin: Santo Muchyante Sarvakilbishe: |
Bhunjate Te Tvagham Papa Ye Pachantyaatmakarnat ||
यत्करोषि यदन्श्रासि यज्जुहोषि ददासि यत् |
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ||
(गीता श्लोक)
In English:-
Yatkaroshi Yadnshrashi Yajjuhoshi Dadaasi yat |
Yattpasyasi Kontey Tatkurushva Madrpanam ||
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः |
प्रानापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ||
(गीता श्लोक)
In English:-
Aham Veshvanro Bhutva Praninam Dehmashrit: |
Pranapansmayuktam: Pchamyannam Chaturvidham ||
!! शांति प्रार्थना !!
ओम सहनाववतु सहनौभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै |
तेजस्वी नाव धीतमस्तु मा कस्चिददुखभागभ्वेत ( मा विद्विषावहै ) ||
In English:-
Om Sahnavavtu Sahnobhunktu Sahviryam Karvavahe |
Tejsvi naav Dhitmastu Maa Kaschidadukhbhagbhavet ( Maa Vidvishaamhe ) ||
और श्रीभगवन ने यह भी कहा है कि जो भी तुम करते हो, खाते हो, देते हो, सोचते हो उन सब का फल मुझे अर्पण करने से भवसागर से मुक्ति मिलती है और मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है |
अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को चाहिए कि बड़ी मुश्किल से उसे जो यह मानव देह (मनुष्य देह) मिली है, उसे व्यर्थ न गवांकर भगवान कि शरण में अर्पित करनी चाहिए | गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में इसका उल्लेख किया है:-
“ बड़े भाग मानस तनु पावा | सुर दुर्लभ सद ग्रंथन गावा ”
इन मन्त्रों को भोजन करने से पहले बोलना श्रेष्ठ रहता है, और इन श्लोकों को बोलते समय भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते रहना चाहिए | जिससे कि मनुष्य का खाना पापियों को प्राप्त न होकर भगवान को अर्पित होता है | और श्री कृष्ण ने भी गीता में यही कहा है कि “अहं वैश्वानरो भूत्वा ” अर्थात में ही सब कुछ हूँ | में ही बीजमंत्र हूँ, और में ही सब प्राणियों कि आत्मा हूँ, में ही विश्व का संचालक हूँ, और में ही संहारकर्ता अर्थात सब मे मैं (परमात्मा) स्थित हूँ और सब मुझ में स्थित है |
(श्री कृष्ण)
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