भगवान का स्मरण और स्मरण रूपी अमृत की महिमा
भगवतस्मरण रुपी अमृत मानव के लिए कितना जरूरी है, इस विषय की चर्चा करने से पहले मैं यह बताना उचित समझाता हूँ की भगवत स्मरण-अमृत क्या है ?
आप के मन में विचार उठ रहे होंगे की इतनी सर्व साधारण बात को क्यों बताया जाता है, पर जरूरत बताने या समझाने की नहीं है, बल्कि उसको अपनाकर जीवन में उतरने की है | और भगवान का सतत संकीर्तन और नाम जप ही भागवत नाम अमृत कहलाता है | तथा भगवान नाम के स्मरण व नित्य चिंतन करने से मनुष्य के सभी पापों का सर्वथा नाश हो जाता है | अत: कहा गया है कि:-
हरिर्हरति पापानि दुष्टचित्तेरपिस्मृत: |
अनिच्छयाऽपि संस्पृष्टो दहत्येव ही पावक: ||
अर्थात:- जिस प्रकार अग्नि बिना इच्छा के स्पर्श करने पर भी जला देती है, उसी प्रकार भगवान नाम भी दुष्टजनों के द्वारा स्मरण करने पर उनके समस्त पापों को हर लेता है |
अत: इसी के सन्दर्भ में भगवन ने देवर्षि नारद को उपदेश देते हुए संकेत किया है-
नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च |
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ! ||
अर्थात:- हे देवर्षि ! मैं न तो वैकुण्ठ में निवास करता हूँ और न ही योगीजनो के ह्रदय में मेरा निवास होता है | मैं तो उन भक्तों के पास सदैव रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मुझको चित्त से लीं और तन्मय होकर मुझको भजते है | और मेरे मधुर नामों का संकीर्तन करते है |
"स्कन्दपुराण" में इस भगवद वचन से श्री भगवन्नाम कि महिमा और भी स्पष्ट हो जाती है-
यन्नाऽस्ति कर्मजं लोके वाग्जं मानसमेव वा |
यन्न क्षपयते पापं कलौ गोविन्दकीर्तनम् ||
अर्थात:- मन, कर्म, वाणी से होने वाले जितने भी पाप होते है वह सभी पाप श्री गोविन्द नाम संकीर्तन से विलीन हो जाते है |
अत: भगवान श्री कृष्ण कहते है कि जो भक्त मुझको अनन्य भव से भजता है मैं उसके सभी पापों को हर लेता हूँ
और उसे परम शांति प्रदान करता हूँ | यथा-
कृष्ण कृष्णेति कृष्णेति यो मां स्मृति नित्यशः |
जलं भित्वा यथा पद्यम् नरकादुद्धराम्यहम् ||
अत: भगवत प्रेमी भक्तों और श्रृद्धालुओं को चाहिए कि अपने स्वविवेक को समय रहते जाग्रत करे और भगवन्नाम कि महिमा को पहचानकर इस अनमोल अमृत को अपने जीवन में घोलकर इसका आनंद लेने से ही मुक्ति संभव है |
श्री कृष्णाय नमः
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